ग़ज़ल ...
इस दिल से सभी ग़म जो थे काफूर हुऐ,
जब तुम से मिले हम बड़े मसरूर हुऐ,,
उस शख्स का अख़लाक़ में सानी ही नहीं,
जब भी मिले उस शख्स से मसरूर हुऐ,,
कल तक जो निगाहों में थे रौशन रौशन,
नज़रों से मनाज़िर वही अब दूर हुऐ,,
क्या कोई समझ पाएगा उन का रुतबा,
दुनिया में मोहब्बत से जो मशहूर हुऐ,,.
अब ख्वाब कोई इस में नज़र क्या आये,
"मुद्दत हुई इस आंख को माज़ूर हुऐ,,
उस दिन ही से है दूर खुशी भी हम से,
जिस रोज़ से तुम हम से सनम दूर हुऐ,,
हालात ने दी है उन्हें ठोकर ए ‘सिराज’
इस देह्र में जो लोग भी मग़रूर हुऐ....!
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