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Mirza Ghalib
 
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* अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल न *
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा 
जिस दिल पे नाज़ था मुझे, वो दिल नहीं रहा 

जाता हूँ दाग़-ए-हसरत-ए-हस्ती लिये हुए 
हूँ शमआ़-ए-कुश्ता दरख़ुर-ए-महफ़िल नहीं रहा 

मरने की ऐ दिल और ही तदबीर कर कि मैं 
शायाने-दस्त-ओ-खंजर-ए-कातिल नहीं रहा 

बर-रू-ए-शश जिहत दर-ए-आईनाबाज़ है 
यां इम्तियाज़-ए-नाकिस-ओ-क़ामिल नहीं रहा

वा कर दिये हैं शौक़ ने बन्द-ए-नक़ाब-ए-हुस्न
ग़ैर अज़ निगाह अब कोई हाइल नहीं रहा 

गो मैं रहा रहीन-ए-सितम-हाए-रोज़गार
लेकिन तेरे ख़याल से ग़ाफ़िल नहीं रहा 

दिल से हवा-ए-किश्त-ए-वफ़ा मिट गया कि वां 
हासिल सिवाये हसरत-ए-हासिल नहीं रहा 

बेदाद-ए-इश्क़ से नहीं डरता मगर 'असद' 
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा
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