गज़ल
क्या बताएं के क्या रहे हैं हम,
राहबर रहनुमा रहे हैं हम,,
जो कभी खत्म ही ना होता था,
ऐसा एक सिलसिला रहे हैं हम,,
हम ने हर दिल का दर्द बाँटा है,
हर मरज़ की दवा रहे हैं हम,,
पत्थरों की हर एक बस्ती में,
सच का एक आईना रहे हैं हम,,
अपना अपना ख्याल होता है,
"कुछ दिनों तक खुदा रहे हैं हम",,
बन के हर ज़ख्म का रहे मरहम,
टूटे दिल की सदा रहे हैं हम,,
हम ने ज़ुल्मत से जंग की है ‘सिराज’,
बन के हर दम ज़ेया रहे हैं हम..!
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