ग़ज़ल....!
“ग़म की हदों से गुज़र गये थे
जीते जी हम तो मर गये थे,,
उन पर हम क्यूं करें भरोसा,
सच कह कर जो मुकर गये थे,,
इस दिल की बे खुदी में यारो,
एक दिन हम उस के घर गये थे,,
गुरबत भी क्या बला है यारो,
हर एक नज़र से उतर गये थे,,
इस दिल को कुछ खबर नहीं थी,
“उस के दर बे-खबर गये थे",,
जब उस ने की थी बे वफाई,
टूट कर हम तो बिखर गये थे,,
आईना ‘सिराज’ देख कर हम,
खुद से ही कितना डर गये थे ..!
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