"ग़ज़ल-...
दुनिया में कब रफ़ीक़ कोई मोतबर मिले,
क़िस्मत से ज़िंदगी में कोई हम सफर मिले,,
खुश क़िस्मती ये कम नहीं मेरी हयात में ,
जो भी मिले मुझे सभी अहले नज़र मिले,,
पल भर ही जिस के साये में गुज़रे ये ज़िंदगी,
कोई तो राह में मुझे ऐसा शजर मिले,,
अब तो हर एक पल यही रहती है आरज़ू,
अपने वतन में अम्न-ओ-आमां की खबर मिले,,
उस हुस्न की ज़िया की तो देनी पड़ेगी दाद,
"परवाने ढूँढ ढूँढ के लाई जिधर मिले",,
मौजों से खेलने का ना जिस में हो हौसला,
मुमकिन नहीं कभी उसे लाल-ओ-गोहर मिले,,
होता है दूर ही से फ़क़त सामना "सिराज",
ऐ काश एक रोज़ नज़र से नज़र मिले...!”
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